Wednesday, October 9, 2013

शुभ दीपावली 2013

                                                                                                                                                                            Diwali Greetings Glitters
दीपावली अथवा दिवाली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। दीपावली की रात्रि को घरों तथा दुकानों पर भारी संख्या में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब जलाए जाते हैं। दीपावली भारत के त्योहारों में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीक़े से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। और गंदे स्थानों की तरफ देखती भी नहीं। इसलिए इस दिन घर-बाहर को ख़ूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है। दीपावली मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सद्गृहस्थों के घर निवास करती हैं।
वास्तव में धनतेरस, नरक चतुर्दशी तथा महालक्ष्मी पूजन- इन तीनों पर्वों का मिश्रण है दीपावली। भारतीय पद्धति के अनुसार प्रत्येक आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है। इस मान्यतानुसार इस उत्सव में भी सोने, चांदी, सिक्के आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता हैं। घरों को दीपमाला आदि से अलंकृत करना इत्यादि कार्य लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को अविर्भूत करने के लिए किए जाते हैं। इस तरह इस उत्सव में उपरोक्त तीनों प्रकार से लक्ष्मी की उपासना हो जाती है।

धार्मिक मान्यता

 

दीपावली के दिन आतिशबाजी की प्रथा के पीछे सम्भवत: यह धारण है कि दीपावली-अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है। कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है। इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है।

रंगोली, दीपावली
धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक रावणादि का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका एक कारण यह भी कि इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं। बहुत से शुभ कार्यों का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना गया है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रम संवत का आरम्भ भी इसी दिन से माना जाता है। अत: यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। आज ही के दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं। तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।

लक्ष्मी पूजन

दीपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रुपये आदि भी दिए जाते हैं। दीपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना है।
Blockquote-open.gif इस दिन धन के देवता कुबेरजी, विघ्नविनाशक गणेशजी, राज्य सुख के दाता इन्द्रदेव, समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान तथा बुद्धि की दाता सरस्वती जी की भी लक्ष्मी के साथ पूजा करें। Blockquote-close.gif

इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। जहां तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है आज पूरे दिन व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी-पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए। जहां तक व्यवहारिकता का प्रश्न है, तीन देवों-महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वतीजी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्योहार का उल्लास ही अधिक रहता है। इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री-पुरुष भोजन करते हैं, उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं। इसी रात को ऐन्द्रजालिक तथा अन्य तंत्र-मन्त्र वेत्ता श्मशान में मन्त्रों को जगाकर सुदृढ़ करते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर की तरंग पर सुख से सोते हैं और लक्ष्मी जी भी दैत्य भय से विमुख होकर कमल के उदर में सुख से सोती हैं। इसलिए मनुष्यों को सुख प्राप्ति का उत्सव विधिपूर्वक करना चाहिएं।

पूजन विधि


लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती
लक्ष्मी जी के पूजन के लिए घर की साफ-सफ़ाई करके दीवार को गेरू से पोतकर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। लक्ष्मीजी का चित्र भी लगाया जा सकता है। संध्या के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए। इस पर गणेश जी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उन्हें तिलक करना चाहिए। चौकी पर छ: चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए। फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजा पहले भारत के पुरुष करें, बाद में स्त्रियां। पूजन करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर लक्ष्मीजी का पूजन करें। इस पूजन के पश्चात तिज़ोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें। अपने व्यापार के स्थान पर बहीखातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो घर की बहू-बेटियों को रुपये दें। लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे करना चाहिए।

दीपावली पर वाराणसी में आरती
इस दिन धन के देवता कुबेर जी, विघ्नविनाशक गणेश जी, राज्य सुख के दाता इन्द्रदेव, समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान तथा बुद्धि की दाता सरस्वती जी की भी लक्ष्मी के साथ पूजा करें। जहां दीवार पर गणेश, लक्ष्मी बनाएं हो वहाँ उनकेzआगे एक पट्टे पर चौमुखा दीपक और छ: छोटे दीपक में घी, बत्ती डालकर रख दें तथा रात्रि के बारह बजे लक्ष्मी-पूजन करें। इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही 101 रुपये, सवा सेर चावल, गुड़, चार केले, हरी ग्वार की फली तथा पांच लड्डू रखकर, लक्ष्मी-गणेश का पूजन करके लड्डुओं से भोग लगाएं। फिर गणेश, लक्ष्मी, दीप, रुपये आदि सब की पूजा करें। दीपकों का काजल सब स्त्री-पुरुषों को आंखों में लगाना चाहिए तथा रात्रि जागरण करके गोपाल सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। यदि इस दिन घर में बिल्ली आए तो उसे भगाना नहीं चाहिए। पूजन की समाप्ति के बाद अपने से बड़ों की चरण वंदना करनी चाहिए। दुकान की गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
रात को बारह बजे दीपावली पूजन के बाद चूने या गेरू में रूई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल-बट्टा तथा सूप पर तिलक करना चाहिए। रात्रि की ब्रह्मबेला अर्थात प्रात:काल चार बजे उठकर स्त्रियां पुराने सूप में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाती हैं तथा सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं। सूप पीटने का तात्पर्य है- 'आज से लक्ष्मीजी का वास हो गया। दुख दरिद्रता का सर्वनाश हो।' फिर घर आकर स्त्रियां कहती हैं- इस घर से दरिद्र चला गया है। हे लक्ष्मी जी! आप निर्भय होकर यहाँ निवास करिए।

दीपावली मनाने की प्रचलित धारणाएं

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दीपावली पर आतिशबाजी
  1. कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का इन्द्र बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी।
  2. इसी दिन समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से लक्ष्मीजी प्रकट हुई थीं और भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था।
  3. इस दिन जब श्री रामचंद्र लंका से वापस आए तो उनका राज्यारोहण किया गया था। इस ख़ुशी में अयोध्यावासियों ने घरों में दीपक जलाए थे।
  4. इसी समय कृषकों के घर में नवीन अन्न आते हैं, जिसकी ख़ुशी में दीपक जलाए जाते हैं।
  5. इसी दिन गुप्तवंशीय राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने 'विक्रम संवत' की स्थापना की थीं। धर्म, गणित तथा ज्योतिष के दिग्गज विद्वानों को आमन्त्रित कर यह मुहूर्त निकलवाया कि नया संवत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाए।
  6. इसी दिन आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण हुआ था।

दीपावली की कथा प्रथम

एक बार सनत्कुमारजी ने सभी महर्षि-मुनियों से कहा- 'महानुभाव! कार्तिक की अमावस्या को प्रात:काल स्नान करके भक्तिपूर्वक पितर तथा देव पूजन करना चाहिए। उस दिन रोगी तथा बालक के अतिरिक्त और किसी व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। सन्ध्या समय विधिपूर्वक लक्ष्मीजी का मण्डप बनाकर उसे फूल, पत्ते, तोरण, ध्वज और पताका आदि से सुसज्जित करना चाहिए। अन्य देवी-देवताओं सहित लक्ष्मी जी का षोडशोपचार पूजन तथा पूजनोपरांत परिक्रमा करनी चाहिए। मुनिश्वरों ने पूछा- 'लक्ष्मी-पूजन के साथ अन्य देवी-देवताओं के पूजन का क्या कारण है?'



दीपावली की रात्रि में जलते हुए दीपक
इस सनत्कुमारजी बोले -'लक्ष्मीजी समस्त देवी-देवताओं के साथ राजा बलि के यहाँ बंधक थीं। आज ही के दिन भगवान विष्णु ने उन सबको बंधनमुक्त किया था। बंधनमुक्त होते ही सब देवता लक्ष्मी जी के साथ जाकर क्षीर-सागर में सो गए थे। इसलिए अब हमें अपने-अपने घरों में उनके शयन का ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए कि वे क्षीरसागर की ओर न जाकर स्वच्छ स्थान और कोमल शैय्या पाकर यहीं विश्राम करें। जो लोग लक्ष्मी जी के स्वागत की उत्साहपूर्वक तैयारियां करते हैं, उनको छोड़कर वे कहीं भी नहीं जातीं। रात्रि के समय लक्ष्मीजी का आह्वान करके उनका विधिपूर्वक पूजन करके नाना प्रकार के मिष्ठान्न का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए। दीपक जलाने चाहिए। दीपकों को सर्वानिष्ट निवृत्ति हेतु अपने मस्तक पर घुमाकर चौराहे या श्मशान में रखना चाहिए।

दीपावली की कथा द्वितीय

प्राचीनकाल में एक साहूकार था। उसकी एक सुशील और सुंदर बेटी थी। वह प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थीं। उस पीपल पर लक्ष्मी जी का वास था। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से कहा- 'तुम मेरी सहेली बन जाओ।' तब साहूकार के बेटी ने लक्ष्मी जी से कहा- 'मैं कल अपने पिता से पूछकर उत्तर दूंगी।' घर जाकर उसने अपने पिता को सारी बात कह सुनाई। उसने कहा- 'पीपल पर एक स्त्री मुझे अपनी सहेली बनाना चाहती है।' तब साहूकार ने कहा- 'वह तो लक्ष्मी जी हैं। और हमें क्या चाहिए, तू उनकी सहेली बन जा।' इस प्रकार पिता के हां कर देने पर दूसरे दिन साहूकार की बेटी जब पीपल सींचने गई तो उसने लक्ष्मी जी को सहेली बनाना स्वीकार कर लिया। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी को भोजन का न्यौता दिया। जब साहूकार की बेटी लक्ष्मी जी के यहाँ भोजन करने गई तो लक्ष्मी जी ने उसको ओढ़ने के लिए शाल दुशाला दिया तथा सोने की चौकी पर बैठाकर, सोने की थाली में अनेक प्रकार के भोजन कराए। जब साहूकार की बेटी खा-पीकर अपने घर को लौटने लगी तो लक्ष्मी जी ने उसे पकड़ लिया और कहा- 'तुम मुझे अपने घर कब बुला रही हो? मैं भी तेरे घर जीमने आऊंगी।' पहले तो उसने आनाकानी की, फिर कहा -'अच्छा, आ जाना।' घर आकर वह रूठकर बैठ गई। तब साहूकार ने कहा- 'तुम लक्ष्मीजी को तो घर आने का निमन्त्रण दे आई हो और स्वयं उदास बैठी हो।' तब साहूकार की बेटी बोली- 'पिताजी! लक्ष्मी जी ने तो मुझे इतना दिया और बहुत उत्तम भोजन कराया। मैं उन्हें किस प्रकार खिलाऊंगी, हमारे घर में तो वैसा कुछ भी नहीं है।'

दीपावली की रात्रि में जलते हुए दीपक
तब साहूकार ने कहा- 'जो अपने से बनेगा, वही ख़ातिर कर देंगे। तू जल्दी से गोबर मिट्टी से चौका देकर सफ़ाई कर दे। चौमुखा दीपक बनाकर लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा।' तभी एक चील किसी रानी का नौलखा हार उठा लाई और उसे साहूकार की बेटी के पास डाल गई। साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर सोने का थाल, शाल, दुशाला और अनेक प्रकार के भोजन की तैयारी कर ली। थोड़ी देर बाद लक्ष्मी जी उसके घर पर आ गईं। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को बैठने के लिए सोने की चौकी दी। लक्ष्मी जी ने बैठने को बहुत मना किया और कहा- 'इस पर तो राजा-रानी बैठते हैं।' तब साहूकार की बेटी ने कहा- 'तुम्हें तो हमारे यहाँ बैठना ही पड़ेगा।' तब लक्ष्मी जी उस पर बैठ गई। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मीजी की बहुत ख़ातिरदारी की, इससे लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई और साहूकार के पास बहुत धन-दौलत हो गई।
  • हे लक्ष्मी माता! जैसे तुम साहूकार की बेटी की चौकी पर बैठी और बहुत सा धन दिया, वैसे ही सबको देना। 
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           सावधानियाँ

  • पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें। उचित दूरी से पटाखे चलाएँ।
  • सावधान और सजग रहें। असावधानी और लापरवाही से मनुष्य बहुत कुछ खो बैठता है। विजयादशमी और दीपावली के आगमन पर इस त्योहार का आनंद, ख़ुशी और उत्साह बनाये रखने के लिए सावधानीपूर्वक रहें।
  • मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें ।
  • भारतीय संस्कृति के अनुसार आदर्शों व सादगी से मनायें। पाश्चात्य जगत का अंधानुकरण ना करें।
  • पटाखे घर से दूर चलायें और आस-पास के लोगों की असुविधा के प्रति सजग रहें।
  • स्वच्छ्ता और पर्यावरण का ध्यान रखें।
  • पटाखों से बच्चों को उचित दूरी बनाये रखने और सावधानियों को प्रयोग करने का सहज ज्ञान दें। 

दीवाली उत्सव 2013



दीवाली त्योहार भी बड़े उत्साह के साथ भारत भर में मनाया जाता है जो दीपावली के रूप में जाना जाता है. दिवाली पर जानकारी शामिल है, दीवाली के त्योहार दुनिया भर में सबसे लोकप्रिय उत्सवों में से एक है. यह अमावस्या के दिन मनाया जाता है, कि कार्तिक महीने के 15 दिन है. कार्तिक हर साल अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर / नवंबर में गिर जाता है कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार माह है. 2013 में दिवाली इस साल के त्योहार, 3 नवंबर को मनाया जा रहा है. यह वर्ष 2013 के लिए दीवाली पर जानकारी है.

दीवाली के त्योहार रोशनी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. दुनिया भर में, दीवाली उत्सव चरम उत्साह और जोश के साथ भारतीयों द्वारा मनाया जाता है. दिवाली पर सूचना प्रकाश आतिशबाजी और नष्ट पटाखों से दिन पर समारोह भी शामिल है. लोग प्रकाश दीये और लंका से अयोध्या के लिए भगवान राम की वापसी मनाया के लिए मोमबत्ती का उपयोग करें. वे रावण पर भगवान राम की जीत का जश्न मनाने. इसलिए, त्योहार बहुत खुशी लाता है. लोगों को सफेद करने के लिए अपने घरों को धोने और रंगोली, प्रकाश और मोमबत्तियों के साथ इसे सजाने का उपयोग करें. दीवाली के दिन पर, लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं. वे, रोशनी, पटाखों के साथ उनके घरों को सजाने मिठाई वितरित और खरीदारी के लिए जाना, नए कपड़े पहनते हैं.
 
लोग अपने त्योहार के बारे में बहुत उत्साहित हैं और इस तरह वे दीवाली के दिन से पहले एक महीने की तैयारी शुरू. वे सफेद, उनके घरों धो रोशनी, रंगोली साथ इसे सजाने और मिठाई और प्रकाश पटाखे तैयार करते हैं. वे खुद के लिए और भी अपने प्रियजनों के लिए खरीदारी के लिए जाना. वे रिश्ते और दोस्ती के बंधन को मजबूत करने के लिए उपहार और मिठाई दे.

भारत में मनाया सभी त्योहारों की, दीवाली के त्योहार से अब तक का सबसे महत्वपूर्ण और आकर्षक एक है. यह हर धर्म के लोगों ने देश भर में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है. त्योहार यह जो धर्म या आप को सदस्य बनने के लिए दुनिया का हिस्सा है जो परेशान नहीं करता है कि इतना सुंदर और रहस्यपूर्ण है. हर कोई अपने उत्सव में शामिल हो जाता है और अपनी सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो जाता है. लोग मिठाई, कपड़े, आतिशबाजी और मिठाई के लिए परिवार की खरीदारी के लिए जाने के रूप में यह त्योहार भी वाणिज्यिक वार्षिक उपभोक्ता होड़ में से एक बन गया है. इस दिवाली के त्योहार की खूबसूरती और पहेली है.

पांच दिनों के लिए मनाया जाता है, जो दिवाली त्योहार के बारे में जानकारी. यह अमावस्या कहा जाता है अंधेरी रात है जो कार्तिक महीने के पन्द्रहवें दिन, पर मनाया जाता है. दो दिन दीवाली के त्योहार से पहले, धनतेरस त्योहार धन्वन्तरि त्रयोदशी के साथ शुरू होता है, जो मनाया जाता है. हिंदुओं कैलेंडर के अनुसार, यह कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की 13 वीं चांद्र दिन है. इस दिन नए बर्तन खरीद के लिए अपनी एक परंपरा. दीवाली के त्योहार से एक दिन पहले, छोटी दीवाली मनाई जाती है. छोटी दीवाली भी नरक चतुर्दशी के रूप में जाना जाता है. तीसरे दिन, यानी, दीवाली के दिन लोगों को आशीर्वाद पाने के लिए भगवान गणेश के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपने घरों में धन और समृद्धि है. दीवाली के अगले दिन, पड़वा या गोवर्धन पूजा मनाया जाता है. लोग उसकी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण करके भारी बारिश से लोगों की रक्षा की है जो भगवान गोवर्धन की पूजा. पांचवें दिन, भाई दूज या भैया दूज मनाया जाता है. इस दिन बहन और भाई के रिश्ते को मनाता है.

Duga Pooja 
दीपावली के पांच दिन

दिवाली खुशी, वैभव, चमक और खुशी का त्योहार है। यह रोशनी का त्योहार है और सभी भारतीयों द्वारा पूरी दुनिया में बड़े उत्साह के साथ मनाया है। इस त्योहार की विशिष्टता पाँच विभिन्न दिनों तक होती है, प्रत्येक दिन का अपना अलग महत्व है। पाँच दिनों तक लोग इस त्योहार को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं।

दीवाली का पहला दिन: धनतेरस
दीवाली के पहले दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। धनतेरस को धनवन्तरी दिवस भी कहा जाता है। यह वास्तव में कृष्ण पक्ष, कार्तिक के महीने के तेरहवें दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान धनवन्तरी मानव जाति के उद्धार के लिए समुद्र से बाहर आए थे। इस दिन दीपावली समारोह की पूरे जोश के साथ शुरुआत हो जाती है।

सूर्यास्त के दौरान इस दिन हिंदु नहा कर मृत्यु के देवता यम राज की असामयिक मृत्यु से बचाव के लिए प्रार्थना करते हैं।पूजा का स्थान हमेशा तुलसी या किसी अन्य पवित्र वृक्ष के निकट बनाया जाना चाहिए। इस दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। कुबेर यंत्र की स्थापना कर, दीपक जला कर पूजा करें और मिठाई का प्रसाद अर्पित करें।

दिवाली का दूसरा दिन: छोटी दीवाली
दीपावली के दूसरे दिन नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने दानव नर्कासुर को नष्ट कर दुनिया को भय से मुक्त बना दिया था। इस दिन तेल से शरीर की मालिश की जाती है ताकि थकान से राहत मिल जाए और दीवाली शक्ति और भक्ति के साथ मनाया जा सके। इस दिन नवरत्न माला धारण करें जिससे आप उच्च पद प्राप्त कर सकेंगे और जीवन में विकास करेंगे।

दिवाली का तीसरा दिन: दीवाली पर लक्ष्मी पूजा
जब तक माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की अराधना ना की जाए दिवाली का उत्सव अधूरा माना जाता है। हिंदू स्वयं को और उनके परिवारों को शुद्ध कर दिव्य देवी लक्ष्मी से बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की विजय प्राप्त करने का ,अधिक धन और समृद्धि का आशीर्वाद माँगते हैं। दिवाली के दिन लक्ष्मी और गणेश यंत्र के साथ हम श्री यंत्र की भी स्थापना कर सकते हैं। श्री यंत्र के द्वारा घर की सभी नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है व शांति, समृद्धि और सद्भाव की वृद्धि होती है।

दिवाली का चौथा दिन: पड़वा व गोवर्धन पूजा
चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। कई हजारों साल पहले, भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा कर बृज के लोगों का उद्धार किया था।यही कारण है कि तब से, हर साल हिन्दू गोवर्धन पूजा कर के इस दिन को उत्सव के रूप में मनाते हैं। एक मुखी रूद्राक्ष को धारण कर आप जीवन में सफलता, सम्मान और धन की प्राप्ति कर सकते हैं।

दीवाली का पांचवा दिन: भाई दूज
दीवाली के पांचवें दिन को  भाई दूज कहा जाता है। सामान्य रूप से यह दिन भाई बहनों को ही समर्पित होता है। यह मान्यता है कि वैदिक युग में मृत्यु के देवता यम ने इस दिन अपनी बहन यमुना के घर जाकर उनसे तिलक करवा कर उन्हे मोक्ष का वरदान दिया था। उसा प्रकार भाई इस दिन बहन के घर जाते हैं और बहनें टीका कर भाई की सुख समृद्धि की मंगल कामना करती हैं। भाई इस दिन बहनों को भेंट स्वरूप कुछ उपहार देते हैं। भाई उपहार के रूप में फेंग शुई गिफ्ट दे सकते हैं जो दिखने में भी आकर्षक होंगे और बहन के लिए सुख समृद्धि ले कर आएंगे। बहनें बगलामुखी यंत्र भाई को उपहार स्वरूप दे सकती हैं, जो सभी बुरी नज़र से भाई की रक्षा करेगा।

Duga Pooja 
दीवाली - रोशनी का त्योहार दीवाली रोशनी का त्योहार है, ऊपर चांद अमावस्या के अंधकार में हल्का होता है और इस अंधकार का कोई अनुमान भी नही लगा सकता जब एक साथ इतनी रोशना जगमगा उठती है। यह अमावस्या, अश्विन, यानी अक्टूबर या नवंबर में हर साल की हिन्दू महीने के अंधेरे पखवाड़े के 15 वें दिन मनाया जाता है। सभी आयु वर्ग के लोग इस त्योहार में भाग लेते हैं। दीवाली में घरों को रंगोली और विभिन्न तरह के रोशनी से सजाया जाता है, मिट्टी के दीये या लैंप जलाके, पटाखे फोड़ के और प्रियजनों को उपहार भेज कर इस त्योहार को मनाया जाता है। दिवाली यही चरितार्थ करती है - असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है । कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों , दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं । घरों में मरम्मत, रंग-रोगन,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं । बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है । दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं । दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है । दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है । लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं । इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं । बाज़ारों में खील-बताशे , मिठाइयाँ ,खांड़ के खिलौने , लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं । स्थान-स्थान पर आतिशबाजियों और पटाखों की दुकानें सजी होती हैं । सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं । दीपमाला दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है । पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं । चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं । रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं । बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं । रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ , आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दुकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। किसानों के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पककर तैया हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।

दीपावली -"रोशनी का त्योहार '

दीपावली भारत में एक रोशनी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। आसमान में पटाखों की रोशनी के साथ घरों की रोशनी स्वास्थ्य, धन, ज्ञान, शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए आकाश को श्रद्धा की अभिव्यक्ति है। एक विश्वास के अनुसार, पटाखों और आतिशबाजी की ध्वनि पृथ्वी पर रहने वाले लोगों की खुशी का उनके देवताओं को संकेत देते हैं।

हालाँकि दिवाली "रोशनी के त्योहार 'के रूप में जाना जाता है,पर इसका महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अर्थ" आंतरिक प्रकाश की जागरूकता है।  दिवाली विशेष रूप से सभी अंधेरे ,सभी बाधाओं और अज्ञान को नाश करने का और आंतरिक प्रकाश का उत्सव है। दीवाली में उत्सव आतिशबाजी, पूजा, रोशनी, मिठाई के बंटवारे के पीछे की कहानी का सार एक ही है - भीतरी आत्मा की सभी अज्ञानता को मिटा कर  वास्तविकता में आनन्द को प्राप्त करना।

दीवाली में घरों में मोमबत्तियाँ, बिजली की रोशनी और आतिशबाजी के प्रकाश द्वारा पूरे घर को जगमग किया जाता है। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए पूरे घर की एक महीने पहले ही साफ-सफाई की जाती है। घर के कोने कोने को सजाया जाता है।
हिन्दू धर्म के अनुसार इस दिन विक्रम कैलेंडर के नए वर्ष की शुरूआत हो जाती है, व्यापारी वर्ग भी इस दिन किताबों का नया खाता खोलते हैं।दिवाली के बहुत पहले से लोग अपने मित्रों के और रिश्तेदारों के घर जाकर उपहार और मिठाईयों का आदान – प्रदान करते हैं। इस दिन सभी घर के लोग नए कपड़े पहनते हैं, जिसके लिए बहुत पहले से खरीदारी शुरू हो जाती है। इस दिन देवी लक्ष्मी और विघ्नविनाशक गणेश की पूजा की जाती है। दिवाली के दिन लक्ष्मी यंत्र और गणेश यंत्र की स्थापना कर, दीपक जला कर प्रसाद चढ़ा कर, फूलों द्वारा उनकी पूजा करें। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि  लक्ष्मी और गणेश की पूजा सदैव एक साथ ही करनी चाहिए। इनकी पूजा द्वारा घर में धन और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।



देवता और मंत्र
दीपावली रोशनी का त्योहार हैं। जगमगाते दीपो के बीच माँ लक्ष्मी की प्रतिमा और माँ की पूजा करते आशीर्वाद के प्रार्थी भक्त, कुछ ऐसा समा होता है, दीपावली के त्योहार का। इस दिन लक्ष्मी, गणेश और धन के राजा कुबेर की पूजा होती हैं, और भक्त लोग ईश्वर से धन-धान्य से सम्पन्न होने की प्रार्थना करते हैं।
धन का देवी, लक्ष्मी
धन, सुख-समृद्धि, विलासिता, रोशनी और सम्पन्नता की देवी लक्ष्मी, प्रभु विष्णु की अर्धांगिनी है। पुराणो के अनुसार दया की देवी लक्ष्मी त्रेता युग में सीता का अवतार लेकर श्री राम की संगिनी बनी और दवापर युग मे राधा और रुकमणि का रुप धारण कर श्री कृष्ण की धर्मपत्नी बनी। देवी लक्ष्मी अपने रुप, सौंदर्य और आकर्षण के लिए भी प्रख्यात हैं। महा लक्ष्मी अपने भक्तो को कभी निराश नही करती, और उनकी मुरादे पूरी कर उन्हे धन और समृद्धि से भरपूर करती हैं।
वेदों मे लक्ष्मी को “लक्ष्यविधि लक्षमिहि” के नाम से संबोधित किया गया हैं, जिसका अर्थ होता हैं, जो लक्ष्य प्राप्ति मे मदद करें।


गणपति देव

हिन्दुओ द्वारा सबसे ज़्यादा पूजे जाने वाले भगवानों मे सबसे प्रमुख हैं, गणेश भगवान। जिन्हे, गणपति, विनायक, लंबोदर आदि नामों से जाना और पूजा जाता हैं। सिर्फ भारत देश मे ही नही, गणेश जी की प्रतिमा की पूजा विश्व के दुसरे भागों मे भी की जाती हैं। गणेश जी का हाथी का सिर परेशानियों को दूर करता हैं, इसलिए उन्हे विघ्नहर्ता भी कहा जाता हैं। हिन्दु धर्म में कोई भी रस्म या विधि बिना गणेश जी पूजा किए संपन्न नही मानी जाती हैं। गणेश हर समारोह को शुभ बना देते हैं।

धन के राजा कुबेर

धन के राजा कुबेर को हिन्दु धर्म में प्रमुख यक्षों मे से एक माना जाता हैं, उन्हे उत्तर दिशा (दिक-पाला) का स्वामी माना जाता हैं, कई मान्यताओ के अनुसार कुबेर को धरती का रक्षक (लोकपाला) के नाम से भी जाना जाता हैं। कुबेर को इस पूरे विश्व की धन-दौलत और सम्पत्ति का स्वामी माना जाता हैं। वेदों और पुराणों में कुबेर को बुरी शक्तियों का स्वामी माना जाता हैं।


दीवाली और पौराणिक कथाएं
दीपावली रोशनी का त्योहार है। पूरे भारत मे इसे बडे धूम-धाम से मनाया जाता है। दीयो की जगमगाहट के बीच हर कोई ईश्वर से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करता है। पटाखो की आवाज़, मोम्बत्ती का प्रकाश, यह सब दीवाली की शान है। दीवाली हिन्दुओ का प्रमुख त्योहार है। यह पर्व अक्तूबर और नवम्बर मे मनाया जाता है। भारत के लोगो के लिए दीवाली के दिन से ही नया साल शुरु हो जाता है। अब यह पर्व भारत मे न सिमटकर पूरी दुनिया मे बडे़ अत्साह के साथ मनाया जाता है।
राम की अयोध्या वापसी:                             
रामायण की कथा के अनुसार, भगवान श्री राम, रावण को युद्ध मे पराजित कर सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे। चौदह साल का वनवास भोगने के बाद जब श्री राम अयोध्या वापस आए थे तो, अयोध्या के लोगो ने अपने राजा के स्वागत के लिए घी के दिए जलाए थे। पटाखे जला कर, नाच-गा कर लोगो ने अपनी खुथियां व्यक्त करी थी। उस दिन से लेकर आज तक हर साल यह दीवाली के नाम से मनता आ रहा है। और आज भी इस त्योहार को रोशनी का प्रतीक मानते है।
कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध :                                   
एक दुसरी कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने इस दिन दानव नरकासुर का वध किया था। उनकी जीत की खुशियां मनाने के लिए गोकुल के लोगो ने दीए जलाए। हिन्दू धर्म के लोगो के लिए राम और कृष्ण दोनो ही प्रमुख भगवान है तो इस कारण दीवाली भी हिन्दु धर्म मे बहुत खास महत्व रखती है।  
Duga Pooja
दिवाली शॉपिंग

क्या आप यह सोच रहे हैं कि इस दिवाली अपने परिवार और मित्र को ऐसा क्या उपहार दें जो उनके लिए यादगार बन जाए ?  यदि ऐसा है, तो हम आपको उपहार तय करने में मदद कर सकते हैं जो भाग्य और समृद्धि ले कर आता है।

यह दीवाली अपने दिल के पास लोगों के लिए और अधिक अनूठी और यादगार बना दें। 


उपहार के लिए क्या खरीदें ?
धनतेरस के साथ शुरू करते हैं, धनतेरस को सभी चीजों को खरीदने के लिए या एक नया व्यापार शुरू करने के लिए शुभ दिन माना जाता है। यह व्यापारी समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। अपने परिवार या मित्रवर्ग में व्यापारी लोगों के लिए एक लक्ष्मी यंत्र या एक कुबेर यंत्र उपहार के रूप में दें, ताकि वह उनके नए बिजनेस के लिए अच्छी किस्मत लाने में मदद करें।

दूसरे दिन नरक चतुर्दशी के रूप में या और छोटी दीवाली के रूप में जाना जाता है. इतिहास के अनुसार, इस दिन जब भगवान कृष्ण दानव नरकासुर को मारा था। इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है तो, इस दिन श्री यंत्र या पारद दुर्गा उपहार के रूप में दे सकते हैं।

तीसरे दिन दिवाली का सबसे महत्वपूर्ण दिन है जब देवी लक्ष्मी, धन की देवी, पूजा है। उपहार देने के लिए लक्ष्मी यंत्र, गणपति यंत्र, पारद गणेश और पारद लक्ष्मी सबसे शुभ होगा।

गोवर्धन पूजा के दिन पर एक तुलसी माला या एक कमल गट्टा माला भेंट सौभाग्य, और अपने करीबी लोगों के लिए धन समृद्धि ला सकता है।

दीवाली की पाँचवां और अंतिम दिन भाई दूज के रूप में जाना जाता है। यह एक दिन जब भाइयों और बहनों को एक दूसरे के लिए अपने प्यार और स्नेह को एकजुट हो कर व्यक्त करते हैं। एक पारद दुर्गा, तुलसी माला या एक श्री यंत्र उपहार में देना अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए भाग्यशाली साबित हो सकता है।

तो, इस दिवाली अपने परिवार और मित्रों को सौभाग्य, धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का विशेष उपहार देकर दिल के और करीब लाएं।

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!